NEELAM GUPTA

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लेखनी प्रतियोगिता -20-Nov-2021 बाल साहित्य लक्ष्मी और बारिश

लक्ष्मी और बारिश 

दिन  में भी  काली काली घटाओं से घनघोर अँधेरा छा गया था । तेज हवाओं से पेड़ सन सन झूम रहे थे तेज आंधी ऐसी आ रही थी कि मानो यह तुफान अपने साथ सब समेट कर ले जाएगा।
10 साल की लक्ष्मी ये देखकर बारिश होने वाली है। उसका मन खुशी से झूम उठा। कि वह बारिश की बौछारो में भीग कर नाचते ।हुए बारिश का भरपूर आनंद लेगी। पानी मे कूद कूद कर छप छप करेगीं।जी भर भीगेगीं। हाथों से बारिश को महसूस करेगीं।

तभी कुछ सोच वह बहुत सहम गई।  ना जाने क्या होने वाला है। क्यो कि उसका परिवार ,एक नाले के किनारे पर झुग्गी बना कर रहता था। इस आशंका से उसका मन भयभीत हो रहा था। कि यदि मुसलाधार वर्षा हुई तो नाले में ऊपर तक पानी भर जाएगा और उनकी झुग्गी में गन्दे नाले का पानी और गन्दगी भरकर उसके घर और परिवार को तहस-नहस कर देगा। मेरे भाईयों और मात पिता का कैसे गुजारा होगा ।हम ऐसे में कहाँ जाएंगे। मेरे तो भाई भी.बहुत छोटे हैं कहीं बीमार न पड़ जाए।

लक्ष्मी को तो इतनी भोली थी कि ये भी नहीं पता था कि लक्ष्मी नाम का अर्थ धन होता है। बस उसको दो वक़्त की रुखी सुखी  रोटी ही नसीब थी । यही उसके लिए जीवन का सुख था। गंदे कपडों मे ,उसके दो छोटे भाई जिन्हें गोदी में उठाये रहती थी और लोगों के सामने हाथ फैलाकर भीख माँग कर अपने माँ-बाप को दे दिया करती थी । न कोई सपने न  बड़े सुखों की चाहत ,सुख दुख क्या होता है इस बात का आभास तक नहीं था। अपने आप मे मस्त रहते हुए जिंदगी बसर करना , लेकिन अपने परिवार पर कोई मुसीबत आये इस बात का एहसास हमेशा रहता था। "गरीब को क्या किसी से लेना देना बस जान सलामत रहे उनकी"।

तभी हल्की हल्की बुंदें पढ़ने लगी और लक्ष्मी घबरा गई, खुशी की जगह बैचेनी ने ले ली ।लेकिन अचानक से आसमान साफ होने लगा और यह देखकर उसकी ऑखों में एक नयी सी चमक आ गई।उसने भगवान का धन्यवाद देते हुए कहा हे भगवान आपने मेरे मन की बात जान ली और अब उसका परिवार सुरक्षित है।

यही आभास उसके माता-पिता को भी हो गया था। यदि अधिक बारिश हुई तो हम लोग बेघर हो जाएंगे । अलगे दिन ही उन्होंने ने एक नई जगह का इंतजाम किया।वह सब अपना समान लेकर एक सुरक्षित जगह पर  चलें  गये। जहाँ पानी न भर सके ।

कभी मासूम चेहरे पर खुशी।
कभी  गम के बादल।
कैसी है ये नाले नाले जिंदगी।
ओढ़े है आसमान का  आँचल।

गरीबी का साथ ।
भीख के लिए फैलते हाथ।
बदबू भरें दिन। सिसकियाँ भरी राते।
आँखो से भी ना देखी कभी किताबे ।

चेहरे पर धूल जमी है।
कपड़ों में भी थेकली लगी हैं।
एक भगवान की दुआ की ।
बारिश का इन्तजार करती साँसे।

ये भी नहीं पता कब ये ।
रहमत की बारिश बरसेगी ।
तक का है इन्तजार ।
हर रोज़ की रोज़ी रोटी ।
मिल पाए यही रहती दरकार।

नीलम गुप्ता नजरिया दिल्ली

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5 Comments

Seema Priyadarshini sahay

20-Nov-2021 08:15 PM

बहुत खूबसूरत रचना

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Swati chourasia

20-Nov-2021 06:59 PM

Very beautiful 👌

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Niraj Pandey

20-Nov-2021 02:52 PM

बहुत ही बेहतरीन👌👌

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